Sunday, 10 October 2021

बिखराव



लिखती है कलम, शब्दो मे जख्म
रक्त स्याही बने, कागज है जिस्म,
है कवि की नियति में बिखर जाना,
टूटे दिल से ही है सुर लेते जन्म।

इतिहास गवाह, पन्ने पलटो,
है इश्क़ ने कितने शायर दिए,
पर नज़्म उन्ही की बिकती है,
रातो में जो गम पीकर जिये,
शायद दिल के टुकड़ों में,
संगीत सुनाई देता है,
अश्रुधार में डूबे मन को
कवि नाव बना ही लेता है, 
है प्यार मधुर संगीत मगर,
बिखराव सरस्वती वीणा है,
कवि हृदय रचने वाली,
बिखराव की अंतहीन पीड़ा है।

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